Tuesday, June 8, 2010

तब मंच पर आता था समूचा ताजगंज || AGRA HINDI NEWS||

आगरा 08 \06\2010 आगरा से दो हजार किलोमीटर दूर जन्मे  प्रख्यात रंग शिल्पी हबीब तनवीर को आगरा शहर से बेहद प्यार था यहाँ के तहजीब उन्हें बहुत आकर्षित करती थी | 'आगरा बाज़ार' , ' चरनदास चोर ' हो या जहरीले हवाओं का मंचन |



हबीब को भी आगरा वासियों ने हाथोंहाथ लिया | नजीर के गीतों पर आधारित नाटक आगरा बाज़ार में तो हबीब मंच पर समूचे ताजगंज सजा देते थे | आजादी के बाद नाटय निर्देशन के छेत्र  में उभरे नामों में से हबीब तनवीर एक है | वह अन्य निर्देशक से अलग इसलिए है , क्योकि वह हिंदी नाटकों को पारसी थियेटर की अतिरंजन के रंग पद्धति से बाहर निकाल आधुनिक रंग सज्जा और रंग संयोजन के साथ वास्तविक रंगभूमि में तब्दील करना चाहते थे | सबसे महत्त्वपूर्ण है | आधुनिक हिंदी नाटय परंपरा को उसकी मूल मिट्टी से उपजाने की फ़िक्र ,कलाबोध और उनका रचना संसार | पहली बार हबीब तनवीर ने समर्द्ध हिंदी रंगमंच पर छत्तीसगढ़ के निरक्षर और ग्रामीण महिला - पुरुष कलाकारों को मंच पर उतारा | रायपुर से चला उनका रंग काफिला भोपाल और दिल्ली पर नहीं नहीं रुका | उन्होंने पूरे देश को छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक तेवरों से परिचित कराया और फिर पुरे दुनिया में घूम घूम कर उसकी धमक सुनाई | नाट्य संस्था रंगलीला के निर्देशक अनिल शुक्ला का कहना है कि बेशक हबीब साहब नहीं रहे , लेकिन अपनी मिटटी के भीतर से उपजने वाले हिंदी नाटक की जो पोध उन्होंने रोपी है | उसे पुष्पित पल्लवित करने की जरुरत है , खासकर ऐसे दौर में , जब हिंदी नाटक अपनी लोकप्रियता के संकट से तरह जूझ  रहा है

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